मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ 45 साल से राजनीति में हैं। 1980 में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा से राजनीति की शुरुआत की। इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को छिंदवाड़ा की जनता को सौंपा था। इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा कहा था। छिंदवाड़ा में कमलनाथ की दोस्ती दीपक सक्सेना से हुई। दीपक सक्सेना और कमलनाथ ने मिलकर छिंदवाड़ा की राजनीति में अलग जगह बनाई। 1980 में पहली बार कमलनाथ सांसद निर्वाचित हुए। एक उपचुनाव के अपवाद को छोड़कर कमलनाथ छिंदवाड़ा से लगातार विजय हासिल करते रहे हैं।
पिछली लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने बेटे नकुलनाथ को मैदान में उतारा था। नकुलनाथ भी छिंदवाड़ा से विजयी हो गए। दूसरी ओर कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की वजह से कमलनाथ की कुर्सी चली गई। उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। बावजूद इसके छिंदवाड़ा में कमलनाथ का विजय रथ नहीं रुका।
2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने नकुलनाथ को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा से विवेक बंटी साहू चुनाव मैदान में हैं, लेकिन 2024 का छिंदवाड़ा का लोकसभा चुनाव अलग है। कमलनाथ के 44 साल के राजनीतिक इतिहास में पहली बार विरोध हो रहा है। प्रतिदिन कांग्रेस के नेता कमलनाथ का साथ छोड़ रहे हैं। भाजपा में शामिल होकर कमलनाथ को चुनौती दे रहे हैं। अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह, छिंदवाड़ा नगर निगम के महापौर विक्रम अहके और कमलनाथ के सबसे करीबी दीपक सक्सेना भाजपा में शामिल हो चुके हैं। दीपक सक्सेना कमलनाथ के करीबी होने के साथ उनके दोस्त थे। कमलनाथ को दीपक सक्सेना पर सबसे ज्यादा विश्वास था। यही वजह है कि 2018 में कमलनाथ के कहने पर दीपक सक्सेना ने विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ को विधानसभा का चुनाव लड़ना था। दीपक सक्सेना ने 2019 के उपचुनाव में कमलनाथ के लिए कुर्सी छोड़ दी थी। कमलनाथ छिंदवाड़ा से विधायक निर्वाचित हुए थे।
2024 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ का कुनबा बिखरता जा रहा है। बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता कमलनाथ का साथ छोड़ रहे हैं। भाजपा में शामिल होकर कमलनाथ के खिलाफ चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अब यह देखना है कि दल बदल की राजनीति में कमलनाथ कैसी रणनीति बनाते हैं। नकुलनाथ लोकसभा का चुनाव जीत पाते हैं या छिंदवाड़ा में कांग्रेस का विजय रथ रोकने में भाजपा सफल हो पाती है।