किसी भी व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना संभव नहीं है, क्योंकि पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक अच्छी खासी राशि खर्च करनी पड़ती है। प्रचार प्रसार में लाखों रुपए की जरूरत पड़ती है। अब सवाल यह उठता है कि राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने के लिए पैसा कहां से मिलता है? चुनाव में खर्च के लिए राशि प्रत्याशियों को कौन देता है? राजनीतिक दलों के आय का स्रोत क्या होता है?
किसी भी राजनीतिक पार्टी के इनकम का स्रोत निश्चित नहीं है। विभिन्न माध्यमों से राजनीतिक दलों को धनराशि मिलती है। सबसे ज्यादा पैसा चंदे से आता है। इन दिनों देश भर में चुनावी बाॅन्ड की चर्चा हो रही है। चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट की नजर विभिन्न राजनीतिक दलों को मिले पैसे पर है। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। एसबीआई से लगातार हलफनामा मांगा जा रहा है।
पिछले दिनों एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की एक रिपोर्ट सामने आई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि राजनीतिक दलों को जो कुछ पैसा मिला है, उसमें से 53% राशि के स्रोत का पता नहीं चल पाया है। फिर पार्टियों के पास पैसा कहां से आता है? राजनीतिक पार्टियों को सबसे ज्यादा धनराशि विभिन्न कंपनियों से चंदा के रूप में प्राप्त होती है। करोड़ों रुपए की राशि अलग-अलग सेक्टर की कंपनियां देती हैं। स्वैच्छिक दान से भी पार्टियों के खाते में पैसे आते हैं। क्राउड फंडिंग, कूपन बेचना, पार्टी का साहित्य बेचकर भी पैसा इकट्ठा किया जाता है। सदस्यता अभियान भी चलाया जाता है, जिसमें पार्टी के नेता और कार्यकर्ता चंदा देते हैं। इसके अलावा अज्ञात स्रोतों से भी आय होती है।
पिछले दिनों सरकार ने तीन बड़े बदलाव किए थे। राजनीतिक पार्टियां विदेश से चंदा ले सकती हैं। कोई भी कंपनी कितनी भी राशि किसी भी पार्टी को दे सकती है। इसके अलावा कोई भी व्यक्ति या कंपनी गुप्त रूप से चुनावी बाॅन्ड के जरिए किसी पार्टी को चंदा दे सकती है। इस समय देश भर में यही चुनावी बाॅन्ड सुर्खियां बटोर रहा है।
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय से राजनीतिक पार्टियों का संचालन होता है। चुनाव में प्राप्त धनराशि को खर्च किया जाता है। सक्षम प्रत्याशी अपने खर्चे पर चुनाव लड़ते हैं। ऐसे प्रत्याशी जिनके पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं होती है, उन्हें राजनीतिक दल धनराशि उपलब्ध कराते हैं।