अयोध्या के राम मंदिर की कानूनी लड़ाई 134 साल चली है। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ है। 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पूरा देश राममय हो गया है। सन 1526 में मुगल शासक बाबर भारत आया। दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में मस्जिद बनवाई। मस्जिद का निर्माण भगवान राम के जन्म स्थान पर किया गया। मीरबाकी के मस्जिद बनाने के 330 साल बाद कानूनी लड़ाई शुरू हुई। 1858 में पहली बार परिसर में हवन, पूजन करने को लेकर एक एफआईआर हुई। 27 साल बाद 1885 में राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई अदालत पहुंची।
निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर किया। 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। आजादी के बाद पहला मुकदमा हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में दायर किया। 5 दिसंबर 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। 3 मार्च 1951 को गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।
17 दिसंबर 1959 को रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा दायर कर स्थान पर अपना दावा ठोका। एक और मुकदमा 18 दिसंबर 1961 को दर्ज किया गया। यह मुकदमा उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दायर किया और कहा कि यह जगह मुसलमानों की है। 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति के लिए आंदोलन का फैसला किया। 9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। 8 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कफ्र्यू लगा दिया गया। कोर्ट से 1 जनवरी 1993 को दर्शन-पूजन की अनुमति मिल गई। 7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया।
अप्रैल 2002 में मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू हुई। 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया। 22 अगस्त 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे मंदिर होने की बात सामने आई।
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना।